spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
spot_img
spot_img
Monday, March 20, 2023

वेद प्रताप वैदिक

गुजरात के स्कूलों में 5 जी की तकनीक के बारे में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमाल कर दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री की हैसियत से ‘अंग्रेजी की गुलामी’ के खिलाफ जो बात कह दी है, वह बात आज तक भारत के किसी प्रधानमंत्री की हिम्मत नहीं हुई कि वह कह सके। मोदी ने ‘अंग्रेजी की गुलामी’ शब्द का प्रयोग किया है, जिसके बारे में पिछले 60-70 साल से मैं बराबर बोलता और लिखता रहा हूँ और अपने इस विचार को फैलाने की खातिर मैं जेल भी काटता रहा हूँ और अंग्रेजी्भक्तों का कोप-भाजन भी बनता रहा हूँ।

देश की लगभग सभी पार्टियों के सर्वोच्च नेताओं और प्रधानमंत्रियों से मैं अनुरोध करता रहा हूं कि हिंदी थोपने की बजाय आप सिर्फ अंग्रेजी हटाने का काम करें। अंग्रेजी हटेगी तो अपने आप हिंदी आएगी। उसके अलावा कौनसी भाषा ऐसी है, जो भारत की दो दर्जन भाषाओं के बीच सेतु का काम कर सकेगी? लेकिन हमारे नौकरशाहों और बुद्धिजीवियों के दिमाग पर अंग्रेजी की गुलामी इस तरह छाई हुई है कि उनकी देखादेखी किसी प्रधानमंत्री या शिक्षामंत्री की आज तक हिम्मत नहीं पड़ी कि वह ‘अंग्रेजी हटाओ’ की बात करे।

अंग्रेजी हटाओ का अर्थ अंग्रेजी मिटाओ बिल्कुल नहीं है। इसके सिर्फ दो अर्थ हैं। एक तो अंग्रेजी की अनिवार्यता हर जगह से हटाओ और दूसरा विदेश नीति, विदेश व्यापार और अनुसंधान के लिए हम सिर्फ अंग्रेजी पर निर्भर न रहें। अंग्रेजी के साथ-साथ अन्य विदेशी भाषाओं का भी इस्तेमाल करें। यदि ऐसा हो तो भारत को महाशक्ति और महासंपन्न बनने से कोई ताकत रोक नहीं सकती। प्रधानमंत्री के अंग्रेजी-विरोध का आशय केवल इतना ही है लेकिन तमिलनाडु विधानसभा ने सरकार की भाषा नीति के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करके वास्तव में तमिलनाडु का बड़ा अहित किया है।

गृहमंत्री अमित शाह ने अपने भाषणों में हिंदी थोपने की बात कभी नहीं की है लेकिन देश के हिंदी-विरोधी नेता मनगढंत तथ्यों के आधार पर उनकी बातों का विरोध कर रहे हैं। मुझे तो आश्चर्य है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस-जैसी पार्टी चुप क्यों है? कम से कम वह गांधी नाम की इज्जत बचाए। महात्मा गांधी ने तो यहां तक कहा था कि स्वतंत्र भारत की संसद में जो अंग्रेजी में बोलेगा, उसे हम छह माह की जेल करा देंगे। समाजवाद के पुरोधा डॉ. राममनोहर लोहिया ने तो देश में बाकायदा अंग्रेजी हटाओ आंदोलन चला दिया था लेकिन उ.प्र. की समाजवादी पार्टी भी इस मुद्दे पर मौन धारण किए हुए है।

सर्वत्र अंग्रेजी के एकाधिकार के कारण भारत के गरीब, विपन्न, ग्रामीण और मेहनतकश लोगों की हालत कार्ल मार्क्स के शब्दों में सर्वहारा की बनी हुई है लेकिन इन सर्वहारा की लूट पर मार्क्सवादियों की बोलती बंद क्यों है? मोदी ने जो कहा है, यदि वे वह करके दिखा दें तो दक्षिणपंथी कहे जानेवाले भाजपाई और संघी लोग वामपंथियों से भी अधिक प्रगतिशील साबित होंगे। यदि देश की सर्वोच्च शिक्षा और सर्वोच्च नौकरियां भी भारतीय भाषाओं के जरिए मिलने लगें तो देश के करोड़ों लोगों को सच्ची आजादी मिलेगी। जाति के नाम पर आरक्षण की चूसनियाँ लटकाकर उन्हें पटाने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।

Related articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

15,000FansLike
545FollowersFollow
3,000FollowersFollow
700SubscribersSubscribe
spot_img

Latest posts

error: Content is protected !!
× Live Chat
%d bloggers like this: