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Tuesday, October 3, 2023

हिमाचल प्रदेश। बिलासपुर में दो बच्चों ने हाथों के बल चलकर (हैंड स्टैंड वाॅक) 1,265 मीटर लंबी सुरंग पार कर नशामुक्ति का संदेश दिया। किरतपुर-नेरचौक फोरलेन की दूसरी बड़ी टिहरा सुरंग को इन बच्चों ने बिना रुके 40 मिनट में पार किया। यह उपलब्धि दूसरी कक्षा में पढ़ रहे सात साल के दीपांशु और चौथी कक्षा में पढ़ने वाले 10 साल के शिवम ने हासिल की। बिलासपुर जिले के उपमंडल घुमारवीं के टिहरा स्थित सुरंग में इस वॉक का आयोजन प्रगति समाज सेवा समिति की ओर से नशा मुक्त समाज मुहिम के तहत कराया गया था।

इस वॉक में इस क्षेत्र के विभिन्न स्कूलों के 21 विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। समिति इन बच्चों का नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने का प्रयास कर रही है, लेकिन उनकी उम्र आड़े आ रही है। सुरंग के पोर्टल एक से दौड़ शुरू की गई। अधिकतर छात्र आधी सुरंग तक पहुंचने में कामयाब भी रहे, लेकिन इसके बाद कुछ धीरे-धीरे बाहर होते रहे, लेकिन दीपांशु और शिवम ने 40 मिनट में इस सुरंग को बिना रुके पार किया। पूरी दौड़ की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गई। समिति के संस्थापक सुनील कुमार ने इन बच्चों को प्रशिक्षण दिया है। सुनील उनका नाम वर्ल्ड रिकाॅर्ड में दर्ज कराने के लिए भी प्रयास कर रहे हैं

उन्होंने लिम्का बुक और गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड को इस बारे में ई-मेल भी की है। सुनील के अनुसार इसमें इन छात्रों की उम्र आड़े आ रही है। रिकॉर्ड बनाने के लिए 13 साल से अधिक की उम्र की शर्त रखी गई। सुनील का दावा है कि इतनी छोटी उम्र के एक भी बच्चे के नाम इतनी लंबी दूरी हाथों पर चलकर तय करने का रिकॉर्ड नहीं है।
समिति सामान्य और हाथों के बल पर 117 बार दौड़ आयोजित करवा चुकी है। इन बच्चों ने बिलासपुर जिले के 367 मीटर सबसे लंबे पुल को भी तीन बार हाथों पर चलकर पार किया है।
दीपांशु मिनर्वा स्कूल में निशुल्क पढ़ाई कर रहा है। दीपांशु को गूगल बॉय के नाम से भी जाना जाता है। दीपांशु और शिवम के माता-पिता प्रवासी कामगार हैं, जो घुमारवीं में मजदूरी करते हैं। शिवम वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला भगेड़ में पढ़ाई करता है। सुनील ने भगेड़ में अपाहिज गोवंश केंद्र शुरू किया है, जहां घायल गोवंश का उपचार होता है। पांच साल पहले गोवंश केंद्र के पास भगेड़ स्कूल के मैदान में खेलने आने वाले प्रवासी बच्चों को कराटे में निपुण सुनील ने प्रशिक्षण देना शुरू किया। अब उनके पास 30 से अधिक स्थानीय और प्रवासी बच्चे प्रशिक्षण लेते हैं।

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