वन पंचायतों के अधिकारों में लगातार की जा रही कटौती का किया विरोध
अल्मोड़ा। वन पंचायत सरपंच संगठन ताकुला की इनाकोट में हुई बैठक में वक्ताओं ने वन पंचायतों के अधिकारों में लगातार की जा रही कटौती का विरोध किया। वन पंचायतों की समस्याओं पर चर्चा कर समाधान के लिए शासन, प्रशासन से कारगर कमद उठाने की मांग की गई।
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वक्ताओं ने शासन और प्रशासन पर वन पंचायतों की उपेक्षा का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत के साथ लंबे संघर्ष के बाद हासिल और गौरवशाली इतिहास को समेटे वन पंचायतें आज भारी संकट के दौर से गुजर रही हैं। एक तरफ नियमावली के जरिये वन पंचायतों के अधिकारों में लगातार कटौती की जा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ पंचायती वनों के विकास के लिए चलाई जाने वाली विभिन्न योजनाएं कुछ चयनित वन पंचायतों में ही चलाई जा रही हैें। अधिकांश वन पंचायतों को कोई भी बजट नहीं मिल पा रहा है।
उन्होंने दावानल नियंत्रण के लिए वन विभाग द्वारा वन पंचायतों के साथ समन्वय स्थापित करने के लिए कारगर कदम न उठाए जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। वन पंचायत की स्वायत्तता बहाल की जाए। उन्होंने सरपंचों और पंचों को सम्मानजनक मानदेय देने, पंचायती वन का क्षेत्रफल गांव की आबादी एवं पशुधन के आधार पर निर्धारित करने, दावानल नियंत्रण के लिए वन पंचायतों के साथ मिलकर कार्य योजना तैयार करने, ब्लाक से लेकर राज्य तक परामर्शदात्री समितियों का गठन यथाशीघ्र करने, वन पंचायतों को नियमित वजट उपलब्ध कराने, लीसा रायल्टी का भुगतान समय पर करने की मांग की।
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वक्ताओं ने कहा कि वन पंचायतों के चुनाव समूचे प्रदेश में एक साथ गुप्त मतदान द्वारा कराया जाए। अध्यक्षता वन पंचायत सरपंच सगठन ताकुला के अध्यक्ष डूंगर सिंह भाकुनी और संचालन सरपंच संगठन के सचिव दिनेश लोहनी ने किया। बैठक में संगठन के संरक्षक ईश्वर जोशी, बालम सुयाल, प्रताप नेगी, चंदन बिष्ट, कोषाध्यक्ष बहादुर मेहता, सरपंच जया कांडपाल, नंदी देवी, प्रकाश चंद्र, सुंदर पिलख्वाल, जगदीश सिंह आदि थे।