सदियों से उत्तराखंड के जंगलों को आग से बचा रहा ये खास झाड़ू, आधुनिक उपकरणों को देता है मात
देहरादून : झांपा है तो ठीक, अन्यथा बिन झांपा सब सून। यही तो है झांपे की विशेषता, जो अब से नहीं, सदियों से अपनी श्रेष्ठता बनाए हुए है। झांपा, यानी हरी पत्तीयुक्त टहनियों को तोड़कर बना विशेष प्रकार का झाड़ू। यही वह कारगर हथियार है, जो आधुनिक उपकरणों को मात देते हुए जंगलों को आग से बचाने में आज भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। असल में उत्तराखंड में भौगोलिक जटिलताएं अधिक हैं।
मैदानी क्षेत्र के जंगलों में तो लीफ ब्लोअर जैसे आधुनिक उपकरण उपयोग में जरूर लाए जाते हैं, लेकिन पहाडिय़ों पर इन्हें ले जाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। पहाड़ का भूगोल ऐसा है कि जंगलों में आग बुझाने में जुटे कर्मियों के सामने स्वयं के लिए पानी से भरी बोतल तक ले जाना भी मुश्किल होता है। ऐसे में झांपा ही आग बुझाने में सबसे उपयुक्त होता है और इसका उपयोग वनकर्मी लगातार करते आ रहे हैं।
तापमान निरंतर उछाल भर रहा है। उस पर जंगलों में आग की बढ़ती घटनाओं ने अलग से मुश्किल खड़ी कर दी है। ऐसे में बेजबानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। एक तो गला तर करने के लिए इधर से उधर भटकते बेजबान और दूसरा आग में झुलसने का खतरा। इस परिदृश्य के बीच बेजबानों के पानी की तलाश व स्वयं को बचाने के लिए निचले क्षेत्रों में आने पर मनुष्य से सामना।
निचले क्षेत्रों में तो शिकारी ऐसे समय की ताक में बैठे भी रहते हैं और अवसर पाते ही वे अपनी करतूत को कब अंजाम दे दें कहा नहीं जा सकता। यानी बेजबानों के लिए यह मुश्किल की घड़ी है। इससे उन्हें बाहर निकालने के लिए जंगल के रखवालों को तो अपनी जिम्मेदारी ढंग से निभानी ही होगी, आमजन को भी सतर्क और सजग रहना होगा। आखिर, प्रश्न बेजबानों को बचाने और उनकी सुरक्षा का भी है।