मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के काल में अपराध
चैत्र शुक्ल नवमी को ‘श्री रामनवमी’ कहते हैं । श्रीराम के जन्म के उपलक्ष्य में श्रीरामनवमी (इस वर्ष 10 अप्रैल) मनाई जाएगी। इस दिन जब पुष्य नक्षत्र पर, मध्यान्ह के समय, कर्क लग्न में सूर्यादि पांच ग्रह थे, तब अयोध्या में प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ । अनेक राम मंदिरों में चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक यह उत्सव मनाया जाता है। रामायण के पारायण, कथा-कीर्तन तथा श्रीराम की मूर्ति का विविध शृंगार कर, यह उत्सव मनाया जाता है । नवमी के दिन दोपहर में श्रीराम जन्म का कीर्तन किया जाता है।
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मध्याह्न काल में एक नारियल को छोटे बच्चे की टोपी पहनाकर पालने में रखकर, पालने को हिलाते हैं। भक्तगण उस पर गुलाल तथा पुष्पों का वर्षाव करते हैं। इस दिन श्रीराम का व्रत भी रखा जाता है। ऐसा कहा गया है कि यह व्रत करने से सभी व्रतों का फल प्राप्त होता है तथा सर्व पापों का क्षालन होकर अंत में उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है।
देवताओं एवं अवतारों की जन्मतिथि पर उनका तत्त्व भूतल पर अधिक मात्रा में सक्रिय रहता है। श्रीरामनवमी के दिन रामतत्त्व सदा की तुलना में 1 सहस्र गुना सक्रिय रहता है। इसका लाभ लेने हेतु रामनवमी के दिन ‘श्रीराम जय राम जय जय राम ।’ यह नामजप अधिकाधिक करना चाहिए।
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प्रभु श्रीराम का नामजप ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ – यह श्रीराम का अत्यंत प्रचलित नामजप है। इस जप में ‘श्रीराम’, यह शब्द श्रीराम का आह्वान है। ‘जय राम’ यह शब्द स्तुति वाचक है और ‘जय जय राम’ – यह ‘नमः’, जो अन्य देवताओं के नामजप के अंत में उपयोग किया जाता है। उस प्रकार शरणागति का दर्शक है ।
रामायण में ‘राम से बडा राम का नाम’ की कथा भी हम सबने सुनी है । सभी जानते हैं कि ‘श्रीराम’ शब्द लिखे पत्थर भी समुद्र पर तैर गए। उसी प्रकार श्रीराम का नामजप करने से हमारा जीवन भी इस भवसागर से निश्चित मुक्त होगा ।